बिहार, एक ऐसा राज्य जिसकी भूमि ने ज्ञान, दर्शन और राजनीति की दिशा तय की। जहां नालंदा और विक्रमशिला जैसे प्राचीन विश्वविद्यालयों ने पूरी दुनिया को शिक्षा का केंद्र दिखाया। जहां चाणक्य की रणनीति, बुद्ध की करुणा और गांधी की सादगी ने जन्म लिया। लेकिन यह गौरवशाली इतिहास आज सवालों के घेरे में है। क्या आज का बिहार अपने अतीत के अनुरूप विकास कर रहा है? इस लेख में हम बिहार की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति का विश्लेषण करेंगे और देखेंगे कि आगे की राह क्या हो सकती है।
बिहार की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और भौगोलिक स्थिति
बिहार का गठन 22 मार्च 1912 को बंगाल प्रेसीडेंसी से अलग होकर हुआ। 1936 में उड़ीसा और 2000 में झारखंड अलग हुए। आज का बिहार करीब 94,163 वर्ग किलोमीटर में फैला है और भारत का 12वां सबसे बड़ा राज्य है। लेकिन जनसंख्या के लिहाज से यह शीर्ष तीन में आता है।
2021 के अनुमान के अनुसार, बिहार की आबादी लगभग 13 करोड़ है। प्रति वर्ग किलोमीटर करीब 1,100 लोग बसते हैं, जिससे यह भारत का सबसे घनी आबादी वाला राज्य बनता है।
यह जनसंख्या यदि कुशल मानव संसाधन में बदली जाए, तो बिहार देश की आर्थिक ताकत बन सकता है। लेकिन इसके लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की आधारभूत संरचनाओं में सुधार बेहद आवश्यक है।
बिहार और पलायन की त्रासदी
बिहार से मजदूरों का बड़े पैमाने पर पलायन कोई नई बात नहीं है। लाखों लोग हर साल रोज़गार की तलाश में दिल्ली, मुंबई, पंजाब, गुजरात जैसे राज्यों की ओर रुख करते हैं। उनके पास हुनर है, श्रम है, लेकिन अवसर नहीं।
कोविड-19 के दौरान यह असमानता और भी स्पष्ट हो गई। मजदूरों की हालत देखकर पूरे देश की आंखें नम हुईं। सवाल उठता है कि क्या कोई राज्य इतना लाचार हो सकता है कि वहां अपने ही लोगों को जीविका का साधन न मिल सके?
अगर स्थानीय स्तर पर ही रोजगार सृजन हो, उद्योग लगे और कृषि को तकनीक से जोड़ा जाए, तो यह स्थिति बदली जा सकती है।
बिहार की राजनीति और बदलती उम्मीदें
बिहार की राजनीति में हमेशा से जातीय समीकरण और गठबंधन हावी रहे हैं। लेकिन अब माहौल बदल रहा है। आज का युवा विकास, शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य जैसे मूलभूत मुद्दों पर सवाल पूछ रहा है।
2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव बिहार के लिए एक अहम मोड़ साबित हो सकते हैं। यदि राजनीतिक दल सिर्फ वादों तक सीमित रहे, तो जनता अब जवाब मांगने के लिए तैयार है।
क्या बिहार औद्योगिक राज्य नहीं बन सकता?
बिहार के पास वह सबकुछ है जो एक औद्योगिक राज्य बनने के लिए चाहिए:
- श्रमशक्ति
- रेलवे व सड़क नेटवर्क
- उपजाऊ भूमि और जल संसाधन
- कृषि उत्पादों की विविधता
बावजूद इसके बिहार में बड़े उद्योगों की भारी कमी है। न तो यहां ऑटोमोबाइल उद्योग है, न टेक्सटाइल पार्क, न ही कोई बड़ा आईटी हब। इसका कारण नीतिगत अस्थिरता, निवेश में बाधाएं और बुनियादी ढांचे की कमी है।
यदि राज्य सरकार एक स्थायी औद्योगिक नीति बनाए, निवेशकों को भरोसा दे, और स्थानीय उद्यमिता को बढ़ावा दे — तो यह परिदृश्य बदला जा सकता है।
बिहार के समग्र विकास के लिए जरूरी कदम
बिहार को आगे बढ़ाने के लिए नीचे दिए गए बिंदुओं पर त्वरित और ठोस कार्यवाही होनी चाहिए:
- शिक्षा क्षेत्र में सुधार:
- प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में गुणवत्ता बढ़ाई जाए।
- डिजिटल माध्यमों से दूरदराज़ के क्षेत्रों तक शिक्षा पहुंचाई जाए।
- रोजगार और कौशल विकास:
- उद्योगों को विशेष आर्थिक क्षेत्र उपलब्ध कराए जाएं।
- युवाओं को तकनीकी प्रशिक्षण दिया जाए, ताकि वे स्वरोजगार कर सकें।
- स्वास्थ्य सेवाओं का सुदृढ़ीकरण:
- ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को आधुनिक बनाना होगा।
- विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति सुनिश्चित की जाए।
- सार्वजनिक प्रशासन और पारदर्शिता:
- सरकारी योजनाओं की निगरानी के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म अपनाया जाए।
- भ्रष्टाचार पर सख्त कार्रवाई हो।
- ग्रामीण विकास और कृषि सुधार:
- किसानों को आधुनिक तकनीक और बीमा का लाभ मिलना चाहिए।
- प्रसंस्करण उद्योगों से कृषि को जोड़ा जाए।
- युवाओं के लिए अवसर:
- स्टार्टअप नीति बनाई जाए।
- खेल, विज्ञान और तकनीक में रुचि रखने वाले युवाओं को संसाधन दिए जाएं।
निष्कर्ष
बिहार को सिर्फ अतीत की विरासत पर जीने की ज़रूरत नहीं है, उसे अपना भविष्य खुद गढ़ना होगा। अगर सरकार, समाज और हर नागरिक मिलकर जिम्मेदारी निभाए, तो बिहार भी देश के अग्रणी राज्यों में शामिल हो सकता है।
अब वक्त आ गया है कि बिहार के लोग जातिवाद, क्षेत्रवाद और तात्कालिक लाभ से ऊपर उठकर दीर्घकालिक विकास की दिशा में सोचें और काम करें।
बिहार बदल सकता है — और वह बदलाव हम सबके हाथ में है।