तमिलनाडु सरकार ने हटाया रुपये का चिन्ह, अपनाया तमिल प्रतीक – भाषाई पहचान या नई बहस?

नई दिल्ली/चेन्नई: तमिलनाडु सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए आधिकारिक बजट दस्तावेज़ों में भारतीय रुपये (₹) के प्रतीक को हटाकर उसकी जगह तमिल भाषा का प्रतीक ‘ரூ’ (रु) उपयोग किया है। यह निर्णय भारत में भाषाई विविधता और क्षेत्रीय पहचान की बहस को और तेज कर सकता है।

तमिलनाडु सरकार का फैसला क्यों अहम है?

इस फैसले के पीछे राज्य सरकार की मंशा अपनी क्षेत्रीय भाषा और पहचान को मजबूत करना बताई जा रही है। तमिलनाडु लंबे समय से हिंदी के अनिवार्य उपयोग का विरोध करता आया है और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) सरकार अक्सर “हिंदी थोपने” के मुद्दे पर केंद्र सरकार से टकराती रही है। इस बदलाव को उसी नीति का हिस्सा माना जा रहा है।

राज्य के वित्त मंत्री पी. त्‍यागराजन द्वारा प्रस्तुत बजट दस्तावेज़ों में ₹ की जगह तमिल प्रतीक ‘ரூ’ का उपयोग किया गया। यह पहली बार है जब किसी राज्य ने आधिकारिक वित्तीय दस्तावेजों में राष्ट्रीय मुद्रा प्रतीक को बदलने का फैसला लिया है।

भाषाई अस्मिता बनाम राष्ट्रीय प्रतीक

इस कदम को भाषाई अस्मिता और क्षेत्रीय पहचान को बढ़ावा देने के रूप में देखा जा रहा है। तमिलनाडु सरकार का मानना है कि भारतीय रुपये का प्रतीक हिंदी और संस्कृत की प्रेरणा से बनाया गया है, जबकि तमिल भाषा की एक समृद्ध ऐतिहासिक विरासत है और वह अपने मौलिक प्रतीकों का उपयोग करने की हकदार है।

हालांकि, यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या किसी राज्य सरकार को राष्ट्रीय मुद्रा प्रतीक में बदलाव करने का अधिकार है? भारत में रुपये का प्रतीक आधिकारिक रूप से 2010 में अपनाया गया था, जो देवनागरी ‘र’ और रोमन ‘R’ के मिश्रण से बना है। इस प्रतीक का उपयोग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय मुद्रा को अलग पहचान देने के लिए किया जाता है।

क्या इस बदलाव का कानूनी आधार है?

विशेषज्ञों के अनुसार, भारतीय रुपये का प्रतीक आरबीआई और भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है, लेकिन यह संवैधानिक रूप से बाध्यकारी नहीं है। इसलिए, राज्य सरकार अपने दस्तावेजों में क्षेत्रीय प्रतीकों का उपयोग कर सकती है। हालांकि, अभी तक केंद्र सरकार की ओर से इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।

भविष्य में क्या होगा?

तमिलनाडु सरकार का यह कदम एक बड़ा राजनीतिक और सांस्कृतिक संदेश देता है। यह संभव है कि अन्य राज्य भी इसी तरह की पहल करें और क्षेत्रीय प्रतीकों को बढ़ावा देने का प्रयास करें।

लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह फैसला भारत की एकता और आर्थिक व्यवस्था पर कोई प्रभाव डालेगा? क्या अन्य राज्य भी अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में मुद्रा प्रतीक अपनाने की मांग करेंगे?

निष्कर्ष

तमिलनाडु सरकार द्वारा रुपये के प्रतीक को बदलने का निर्णय एक ऐतिहासिक और बहस छेड़ने वाला कदम है। यह एक ओर जहां भाषाई और सांस्कृतिक गर्व का प्रतीक बन सकता है, वहीं दूसरी ओर इससे केंद्र और राज्य के बीच टकराव की संभावना भी बढ़ सकती है।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र सरकार इस फैसले पर क्या रुख अपनाती है और क्या अन्य राज्य भी इसी राह पर चलते हैं।

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