तलाक, कानून और मीडिया की दोहरी नीति: अतुल अग्रवाल, चित्रा त्रिपाठी और तीन तलाक पर दोहरे मापदंड

हाल ही में पत्रकार अतुल अग्रवाल और चित्रा त्रिपाठी के निजी जीवन से जुड़ी खबरें चर्चा में हैं। दोनों ही मीडिया जगत के चर्चित नाम हैं और उनके तलाक को लेकर सोशल मीडिया से लेकर न्यूज़ प्लेटफॉर्म तक चर्चाएं हो रही हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब किसी हिंदू दंपति का तलाक होता है, तो इसे सामान्य कानूनी प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है, जबकि अगर कोई मुस्लिम जोड़ा तलाक ले, तो इसे बड़े सामाजिक और राजनीतिक मुद्दे के रूप में क्यों पेश किया जाता है?

अतुल अग्रवाल और चित्रा त्रिपाठी का मामला

अतुल अग्रवाल और चित्रा त्रिपाठी दोनों ही पत्रकारिता जगत में सक्रिय हैं। दोनों के रिश्ते में दरार की खबरें काफी समय से सामने आ रही थीं और अब तलाक की पुष्टि भी हो चुकी है। लेकिन इस मामले में कहीं भी कोई कानूनी बहस या सामाजिक बवाल नहीं दिखा। न ही इसे महिला अधिकारों से जोड़ा गया और न ही इसे अपराध की श्रेणी में रखा गया।

जब मुस्लिम तलाक पर होती है राजनीतिक बहस

इसके उलट, जब भी किसी मुस्लिम दंपति का तलाक होता है, तो इसे एक बड़ी बहस बना दिया जाता है। तीन तलाक को लेकर जिस तरह की चर्चा और राजनीति हुई, वह इसका बड़ा उदाहरण है। मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक की प्रथा को खत्म करने के लिए कानून तक बना दिया गया, जबकि हिंदू समुदाय में तलाक लेने के लिए लंबी कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाता है। सवाल यह उठता है कि अगर तलाक को अपराध माना जाता है, तो फिर हिंदू समाज में तलाक लेने वाले चर्चित नामों पर चर्चा क्यों नहीं होती?

मीडिया की भूमिका और दोहरा रवैया

मीडिया की भूमिका इस मामले में और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। जब मुस्लिम समाज में तलाक की बात होती है, तो इसे “महिला अधिकारों का हनन” और “सामाजिक बुराई” करार दिया जाता है, लेकिन जब हिंदू समाज में तलाक होता है, तो इसे एक निजी मामला बता दिया जाता है।

तीन तलाक को आपराधिक बनाने वाले कानून का तर्क यह था कि मुस्लिम महिलाओं को इसका शिकार बनाया जा रहा है, जबकि आज भी हिंदू समाज में कई महिलाएं घरेलू हिंसा, दहेज प्रताड़ना और कानूनी प्रक्रियाओं में उलझकर तलाक के लिए संघर्ष कर रही हैं। फिर भी इस पर कोई ठोस बहस नहीं होती।

क्या तलाक अपराध होना चाहिए?

अगर तलाक अपराध है, तो फिर इसे सभी समुदायों के लिए अपराध माना जाना चाहिए। लेकिन अगर यह एक व्यक्तिगत फैसला है, तो इसे सभी धर्मों के लिए समान रूप से देखा जाना चाहिए। किसी खास धर्म के लोगों के लिए सख्त कानून बनाना और दूसरे धर्म के लिए इसे एक सामान्य प्रक्रिया मान लेना, समाज में भेदभाव और असमानता को दर्शाता है।

अतुल अग्रवाल और चित्रा त्रिपाठी के तलाक का मामला यह दिखाता है कि समाज और मीडिया किस तरह से धार्मिक पहचान के आधार पर अलग-अलग रुख अपनाते हैं। जब हिंदू समाज में तलाक होता है, तो यह सिर्फ एक व्यक्तिगत निर्णय माना जाता है, लेकिन जब मुस्लिम समाज में ऐसा होता है, तो इसे एक बड़ी सामाजिक और कानूनी समस्या बना दिया जाता है। अगर समानता की बात करनी है, तो कानून, मीडिया और समाज को सभी के साथ समान व्यवहार करना होगा।

Subscribe
Notify of
guest
2 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
order thc online
order thc online
2 months ago

buy weed internationally secure shipping

internet chick
internet chick
2 months ago

internet chick Good post! We will be linking to this particularly great post on our site. Keep up the great writing

2
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x