आज विश्व रेडियो दिवस है। क्यों ना हम आज इसी के बारे में चर्चा करें। रेडियो एक जमाने से लोगों में मित्रवत संबंध बनाए हुए हैं। और आज भी ज्ञान का सार्थक साधन है।
यूं तो आज के टेलीविजन के दौर में तमाम तरह के न्यूज़ चैनल, फिल्म एवं धारावाहिक धड़ल्ले से दर्शकों को परोसी जा रही है। लोग देखते भी हैं। मगर सिवाय परिवार के।
क्योंकि बीच-बीच में कुछ ऐसे दृश्य भी दिखाए जाते हैं जो परिवार के साथ देखना ना गवार लगता है। पर रेडियो के जो विविध रंगी प्रोग्रामें अनेकत्व में एकत्व की भावना भरती है।
20 सितंबर 2010 को स्पेन में विश्व रेडियो दिवस का प्रस्ताव रखा गया स्पेनिश रेडियो एकेडमी द्वारा नवंबर 2011 में यूनेस्को के सदस्य देशों ने स्वीकार किया।
इसके पश्चात पहला विश्व रेडियो दिवस 13 फरवरी 2012 को मनाया गया, सूचना और मनोरंजन के माध्यमों की जो भीड़ है रेडियो का स्थान आज भी अडिग है। क्योंकि यह माध्यम सुनने वाले की कल्पना शक्ति को बढ़ावा देता है। उसे सहेजता है।
रेडियो पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम का कहीं भी आनंद लिया जा सकता है। सफर में हो, अपना काम कर रहे हो, शहर में हो या गांव में दूरदराज के इलाकों में भी रेडियो आपको दुनिया से जोड़े रखता है। रेडियो पर कही गई हर बातें श्रोताओं के मन में बस जाते हैं।
रेडियो इस यंत्र की परिकल्पना मैक्सवेल नामक वैज्ञानिक ने की थी रेडियो का सर्वप्रथम आविष्कार 1899 में मारकोनी ने किया जो आज भी ज्ञान का सशक्त माध्यम है।
जहां तक अपने देश की बात है लोग रेडियो से समाचार, विविध प्रकार के कार्यक्रम के द्वारा ज्ञानवर्धक जानकारियां प्राप्त करते हैं। विशेषकर गीत संगीत के उन कार्यक्रमों का जिनमें फिल्मी या गैर फिल्मी हिंदी या प्रादेशिक भाषाओं के लोकगीत वर्षों से सुनते आ रहे हैं।
दोस्तों इस वर्ष विश्व रेडियो दिवस की विषय वस्तु है ‘यानी थीम है’ डायवर्सिटी इन रेडियो यानी रेडियो में विविधता। लोक प्रसारण हो निजी रेडियो चैनल या समुदाय या कविनिधि रेडियो.
दुनिया के सभी समूहों को सूचना एवं प्रसारण में प्रतिनिधित्व मिले। और इस माध्यम से अनेकत्व में एकत्व की भावना प्रबल होती है।
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