दिल्ली – पत्रकारिता के सबसे खराब दौर में एक पत्रकार ऐसा भी है जो देश के युवाओं की धड़कनो में बसता है. इस दौर में जब पूरे न्यूज चैनल सरकार के गुड़गान में कसीदे पढ़ रहे हैं. वह मुखरता से सरकार से तीखे सवाल कर रहा है. बिल्कुल निर्भयता से निडर होकर
निडर होना ही पत्रकारिता की पहली शर्त है जो डरेगा वह सरकार से सवाल क्या करेगा? पत्रकारिता का धर्म निभाते हुए रवीश कुमार एनडीटीवी के प्लेटफार्म से पिछले 30 वर्षो से सरकारों से तीखे सवाल कर रहे थे रवीश वही कर रहे थे जो पत्रकारिता का वसूल है
भारत में 2014 में स्थापित होने वाली मोदी सरकार को रवीश का सवाल भाता नहीं है तीखे सवाल से उससे पहले वाली सरकार भी तिलमिला जाति थी लेकिन उन्हें पत्रकारिता का वसूल पता था वह सरकारें पत्रकारों के सवालों का सामना करती थी.
प्रधानमंत्री जी के बहुत ही करीबी धनवान मित्र ने कथित तौर पर जबरन एनडीटीवी इंडिया को खरीद लिया है ताकि रवीश समेत पूरा एनडीटीवी अन्य चैनलों की तरह प्यारे मित्र की सरकार का गुडगान गाने लगे. लेकिन उन्हें यह नहीं पता की पैसों से हर चीज नही खरीदी जा सकती.
खासकर ईमानदार पत्रकार कभी नही. चैनल में अदानी के हिस्सेदारी के बाद रवीश ने एनडीटीवी से इस्तीफा दे दिया. रवीश हमेशा कहते थे की सड़क पर भी खबर पढ़ लूंगा लेकिन अपना जमीर नहीं बेचूंगा. रवीश को पढ़ने, समझने और देखने का नया पता यूट्यूब है.
रवीश कुमार के एनडीटीवी छोड़ने से गोदी मीडिया के अधिकांश चाटुकार खुश क्योंकि वह सरकार के साथ साथ इन्हे भी आइना दिखा रहे थे. रवीश का सफर थमा नहीं है वह यूट्यूब द्वारा खबरें आप तक पहुंचाते रहेंगे खुद उन्होंने यूट्यूब पर आकर यह खबर साझा की है।
देश भर से रवीश को मिल रहे स्नेह ने यूट्यूब पर चंद दिनों में ही उनकी सबस्क्राइबरों की संख्या 22 लाख के पार कर दिया है. सरकार के कुछ नेता मंत्री यूट्यूब पर भी कानून बनाने की बात कर रहे है. आगे जो भी हो लेकिन एक सच्चा पत्रकार परिशान हो सकता है लेकिन सत्ता की गुलामी मंजूर नहीं कर सकता. यहीं कारण है कि रवीश देश के युवाओं की दिलों के धड़कनों में बसते है।
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