लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का आक्रमक स्वरूप!

एक स्वस्थ स्वतंत्र लोकतंत्र की खूबसूरती का सबसे शक्तिशाली स्वरूप मीडिया है। स्वतंत्र देश भारत में मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। कार्यपालिका व्यवस्थापिका और न्यायपालिका द्वारा जनता के हित में लोक कल्याणकारी योजनाओं को जनता के बीच और जनता के समस्याओं को सरकार तक निष्पक्ष तरीके से पहुंचाना मीडिया का कर्तव्य है। साथ ही सरकार द्वारा जनता के हित में गलत योजनाओं के निर्माण पर मजबूती से सवाल करना उनका लोकतांत्रिक अधिकार है।

लोकतंत्र में मीडिया का एक अहम भूमिका है और इसका कार्य सही और सत्यापित सूचनाओं को जनता के बीच रखना होता है ताकि देश की जनता सही सूचनाओं के आधार पर अपने हित में बने लोक कल्याणकारी योजनाओं का सही से उपयोग कर सकें साथ ही जनता की समस्याओं से सरकार को अवगत कराना होता है जिससे सरकार को जनता की समस्याओं को सुलझाने में मदद मिल सके। सरकार द्वारा जनता की समस्याओं पर चुप्पी साधने पर मीडिया को संपूर्ण अधिकार है कि वह सरकार को कटघरे में खड़ा करके लोकतांत्रिक मूल्यों पर तीखा सवाल करें और सरकार को जनता की समस्याओं को निष्कर्ष तक पहुंचाने के लिए प्रेरित करें।

मीडिया सूचनाओं को प्रिंटेड अखबार, मैगजीन, रेडियो और डिजिटल टेलिविजनों के जरिए जनता तक पहुंचाती है। हालांकि आज के फेसबुक और व्हाट्सएप के जमाने में कई ऐसे प्लेटफार्म भी आ गए हैं जिससे सही सूचनाएं प्रकाशित की जाती हैं। व्हाट्सएप फेसबुक पर फ़ेक खबरों के साथ कई ऐसी खबरें दिखती है जिसको प्रिंटेड अखबार मैगजीन और टेलीविजनों को दिखाने की जरूरत है लेकिन अफसोस उस खबर से वह कोसों दूर हैं। पिछले कुछ वर्षों में भारतीय मीडिया के बदलते स्वरूप ने उन पर सवालिया निशान खड़ा करना शुरू कर दिए हैं।

सही और सत्यापित खबरों को प्रसारित करने वाले मीडिया प्लेटफॉर्म अपने अखबारों और स्क्रीनों को संप्रदायिकता से भर दिए हैं। आजाद भारत के 70 साल बाद बदले मीडिया के सूर ने देश की जनता को एक दूसरे पर शक करने के लिए मजबूर कर दिया है। कार्यपालिका का विपक्ष माना जाने वाला लोकतंत्र का चौथा स्तंभ सरकार के समक्ष खड़ा दिखाई दे रहा है और उससे सवाल करने के बजाए उसकी वाहवाही कर रहा है साथ ही जनता के मूलत: बुनियादी समस्याओं पर पर्दा डालकर देश को गुमराह कर रहा है। सरकार की नाकामियों को छुपाने के लिए सही सूचनाओं की जगह संप्रदायिकता का अंबार को प्रसारित कर देश के अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति नफरत का जहर परोस रहा है।

सूचना के संसाधन के इस रवैया से देश की एक आबादी खुद को असुरक्षित महसूस करने लगी है। सूचनाओं को प्रकाशित करने वाले अपनी कर्तव्य को भूल गए हैं और अपना नियंत्रण किसी और के हाथ में इस तरह दे दिए हैं जैसे सर्कस का शेर अपनी शक्ति भूलकर रिंग मास्टर की छड़ी के इशारे पर नाचता है। मीडिया को यह बात समझनी चाहिए कि वह देश के शेर हैं ना कि सर्कस के। सही को सही और गलत को गलत लिखने/बोलने का अधिकार उन्हें भारतीय संविधान देता है। आज वह जिन लोगों की भक्ति कर रहे हैं यकीनन कल वह उस स्थान पर नहीं होंगे उनके जगह कोई दूसरा आ जाएगा। अपनी कर्तव्य को समझिए और उसका सदुपयोग करिए जिससे एक स्वस्थ स्वतंत्र लोकतंत्र आपकी वजह से कलंकित होने से बच सकें।

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Ramesh
Ramesh
7 months ago

nice post

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