महंगाई बेकाबू है, सरकार!

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की जनता महंगाई की मार से त्रस्त है, वह अपने दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाला हर वस्तु उच्च (अधिक) मूल्य पर खरीदने के लिए विवश है।

महंगाई की हालत यह है कि अधिकांश वस्तुएं प्रिंट मूल्य (MRP) से ज्यादा कीमत पर मिल रही है संपन्न व्यक्ति बाजार के काला बाजारी से चिंतित है वही गरीब लोगों की समान खरीदारी पसीने छुड़ा दे रही है।

प्रत्येक दिन बढ़ते पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर अंकुश लगाने वाला कोई नहीं है सरकार तो इसे अपने नियंत्रण क्षेत्र से बाहर बता रही हैं लेकिन केंद्र व राज्य सरकार का पेट्रोल और डीजल पर लगान (Tax) उसके मूल कीमत से कहीं ज्यादा है।

केंद्र और राज्यों में स्थापित सभी भारतीय सरकारें जनता की हितकारी नहीं है उनका आशियाना अमीर उद्योगपतियों के आगोश में नज़र आता है।

देश के आम नागरिक हताश व निराश है वे महंगाई के खिलाफ आन्दोलन भी नहीं कर सकते UAPA और अन्य धाराओ में जेल जाने का संकट है

मौजूदा सरकार ने देश के लोगों को उनके अधिकार को सही तरीके से बता दिया है, लोगों का मूल अधिकार सिर्फ वोट देना है. उसके आगे कुछ भी किया तो जेल का दरवाजा खुला हुआ है.

इससे पहले वाली सरकार समस्त वस्तुओं पर सब्सिडी लगा कर उसकी मूल कीमत जनता से छुपा रही थी, ये सरकार सब्सिडी का झंझट ख़त्म कर जनता के हित के लिए उसके मूल कीमत पर GST लगा दिया है.

इस सरकार के आने से पहले पेट्रोल डीजल के दाम महीने में कभी एक बार बढ़ाये-घटाए जाते थे. अब प्रत्येक दिन इनके कीमत में उछाल दर्ज किया जा रहा है.

देश की जनता को हिन्दू मुस्लिम में उलझाकर सत्ताधीश पार्टियों की सरकारे लोगों को गुमराह कर देश का शोषण कर रही है.

इस त्रासदी से जनता ही खुद को बचा सकती है. लेकिन वह अपना अधिकार भुल कर सर्कस का शेर बनी हुई है.

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