पटना – बिहार की सरगर्मियों की हलचलो पर निगाहे रखने वाले पप्पू यादव के व्यक्तित्व से अनजान नहीं होंगे। यह शख्स निस्वार्थ मन से बिहार की जनता का विषम परिस्थितियों में मदद करता रहा। बिहार के मुजफ्फरपुर में जब बच्चे चमकी बुखार से दम तोड़ रहे थे और केंद्र व राज्य की सरकार अपने हाथ को ऊपर उठा ली थी उस समय यह शख्स असहाय और मजलूमों की मदद कर रहा था।
कुछ दिनों पहले ही जब बिहार बाढ़ की त्रासदी में था और लोग भूख से परेशान थे उस समय पप्पू यादव लोगों को राशन दे रहे थे। लॉकडाउन के समय जब प्रवासी मजदूरों को देश की पुलिस सड़कों पर पीट रही थी और प्रवासी मजदूर भूख से त्रस्त थे वहां भी पप्पू यादव मजदूरों की मदद करने में पीछे नहीं हटे। लेकिन लोग कितने मतलबी होते हैं यह बात पप्पू यादव को अब समझ में आ गई होगी।
बड़े पैमाने पर गरीब व कमजोरों की मदद करने के लिए पप्पू यादव ने बिहार विधानसभा चुनाव में हिस्सा लिया। यह सोच कर कि जनता का दिल खोलकर मदद किया हूं तो जनता हमारा साथ देगी और जीतने के बाद भी इन्हीं का सेवा करना है। लेकिन पप्पू यादव शायद इस बात को भूल गए कि जनता राशन देने वालों के हाथ शासन नहीं सौंपती है। इसे तो झूठे वादे करने वाले फकीर की जरूरत है जो मुंगेरीलाल के ब हसीन सपने दिखाते हैं।
श्री यादव ने बिहार विधानसभा में अपनी सीट पर मुखरता से प्रचार प्रसार किया। लेकिन अफसोस उन्हे जनता का बहुत ही कम समर्थन मिला जिसके कारण वे सफलता से 3 कदम दूर रहे। लोगों का दिल खोलकर सेवा करने के बाद भी पप्पू यादव की असफलता यह संकेत देती है कि बिहार के लोग अब भी विकास नहीं चाहते है उन्हे तो जाति धर्म के नाम पर लड़ाने वाले बड़बोली राजनेता पसंद है। जो सपना करोड़ों का दिखाते है और विषम परिस्थितियों में पुलिस से डंडे खिलवाते हैं।
लॉक डाउन में प्रवासी मजदूरों का खूनी सफर किसे याद नहीं है केंद्र वाली मोदी सरकार की अचानक देशबंदी फैसले ने समस्त देश पर कहर परपा दिया समस्त सार्वजनिक सेवाएं ठप होने के कारण अपने घरों से मिलो दूर रोजी-रोटी की तलाश में गए प्रवासी मजदूरों के हाथ रोज़गार से खाली हो गए। भूख की त्रासदी ऐसी हुई कि लोग फिर अपने प्रदेश वापस लौटने के लिए पैदल ही खूनी सफर का आगाज कर दिया। क्योंकि सरकार द्वारा यातायात के संसाधनों पर पाबंदी थी।
बिहारी मजदूर भूखे प्यासे और पुलिस के लाठी डंडे खाते हुए हजार से 1500 किलोमीटर का पैदल खूनी सफर तय करके बिहार बॉर्डर पर पहुंचे तो केंद्र द्वारा समर्थित नीतीश सरकार ने मजदूरों को अपने प्रदेश में एंट्री पर पाबंदी लगा दी। इस समय प्रवासी मजदूरों के लिए पप्पू यादव जैसे लोग वरदान साबित हुए। जो इन्हें कुछ खाने पीने का सामग्री उपलब्ध करा रहे थे वरना सरकारों को तो इन पर लाठियां बरसाने से कहां फुर्सत थी।
समाजसेवी पप्पू यादव की इस जघन मेहनत के बाद भी बिहार विधान सभा चुनाव में असफलता लोगों की एहसान फरामोशी दर्शाता है। अगर लोग ऐसे ही काबिल व्यक्तियों को नकारते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब इस देश की गद्दी पर पूरी तरह चोर उचक्के सत्ताधीश बन कर बैठ जाएंगे और इनके जुल्मों से मुक्ति पाने के लिए देश की जनता को एक बार फिर स्वतंत्रता संग्राम छेड़ना पड़ेगा जिसमें सफलता कब मिलेगी इस टेक्नोलॉजी के जमाने में इसपर अनुमान लगाना कठिन है।
Mdi Hindi से जुड़े अन्य ख़बर लगातार प्राप्त करने के लिए हमें Facebook पर like और Twitter पर फॉलो करें.