कहा जाता है कि लोहा को लोहा ही काटता है। पिछले कुछ वर्षों में इस देश की वादियों में नफरतें इस कदर सर चढ़कर बोलने लगी कि हर तरफ झूठ ही झूठ का बोलबाला हो गया। धर्म के नाम पर चंद अधर्मी. लोगों को कट्टर बनाने लगे। धर्मनिरपेक्ष भारत को एकल राष्ट्र बनाने के लिए देश के बहुसंख्यक जनता को उकसाने लगे।
गलत सोच का परिणाम भी गलत ही होता है। और इसके विकास और विस्तार की तीव्रता का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता इसलिए लोग भारी संख्या में इनके चंगुल में फंसते गए। किसी की भक्ति में लीनता दिमाग से सही और गलत की समझ की शक्ति छीन लेता है। बहुत से नौजवान अपनी कैरियर को संवारने की जद्दोजहद कर रहे थे लेकिन जब इनके रडार के दायरे में आए तो हत्यारा बन गए। आज सलाखों के पीछे हैं। दिमाग की बुझी बत्तियों के कारण उन्हें अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है।
नफरत का यह वायरस भारत के वातावरण में इस तरह फैला. कि हर तरफ अंधेरा ही अंधेरा हो गया। देश का अल्पसंख्यक समुदाय और अन्य निम्न जातियां खुद को असुरक्षित महसूस करने लगी. क्योंकि जिसपर यह नफरत का वायरस सवार हो जाता. वह किसी को भी जाति के नाम पर, धर्म के नाम पर और जानवरों के नाम पर. जानवर बनकर उसकी जान ले लेता. देश में हुई सैकड़ों मॉब लिंचिंग की वारदात इस बात की पुष्टि करती हैं।
इंटरनेट के 4G स्पीड के दौर में फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर द्वारा फैलाया गया लोगों के बीच नफरत का ज़हर फल फूल रहा था। 10X10 के कमरे में लेट कर व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी का ज्ञान मुसलमानों से नफरत करने के लिए प्रेरित कर रहा था। व्हाट्सएप और टीवी का ज्ञान सामान था इसलिए मुसलमानों से नफरत करना स्वाभाविक बात थी।
कहा जाता है कि हर बुरे दौर के बाद एक अच्छे दौर की शुरुआत होती है। लेकिन नफरती वायरस के बीच ही कोरोना वायरस ने छलांग लगा दी. व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी और टेलीविजन स्टूडियो में बैठकर नफरत का ज्ञान बांटने वालों ने इस वायरस का भी संप्रदायिककरण करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन इस वायरस ने सांप्रदायिकता से ऊपर उठकर संक्रमण का विस्तार किया जिसे शायद वह नहीं बता सकते।
कोरोना वायरस के संक्रमण को बढ़ते देखकर बिना किसी पूर्वसूचना के संपूर्ण भारत बंद कर दिया गया। जिससे प्रवासी मजदूरों के इनकम पर ब्रेक लग गया वह भूख से तड़पने लगे और गांव के तरफ पलायन करना शुरू कर दिए। यह मजदूर अपना मत देकर जिनके हाथों में सत्ता की बागडोर दी थी वही सरकारें गहरी नींद में चली गईं और इन्हें सड़कों पर पैदल चलने के लिए विवश होना पड़ा।
इनमें अधिकांश वही लोग थे जिन्हें नफरती वायरस से संक्रमित कर मुसलमानों से नफरत करने के लिए प्रेरित किया गया था। इन मजदूरों के पास न हीं खाने की कोई सामग्री थी और ना ही पीने के लिए पानी। पेट भूख से परेशान था तो गला पानी की शिद्दत से खसखसाने लगा था। व्हाट्सएप पर कट्टरता का पाठ पढ़ाने वाले और चुनी हुई सरकारों ने किसी भी प्रकार की कोई मदद नहीं की।
शहरों से मीलों का सफर तय कर पैदल गांव आए लोग बताते हैं कि रास्ते में मुसलमानों के सिवा उनकी किसी और ने मदद नहीं की। मुसलमान रोजा रखकर भी उन्हें पूरे जोश के साथ मदद कर रहे थे। अनेक लोगों ने बताया कि मुसलमानों के बारे में हमें जिस तरह बताया जाता है हम ठीक उसके उल्टा देख रहे थे। सबने यही कहा कि हमारे अंदर मुसलमानों के प्रति जो नफरते भरी गई थी उसे कोरोना वायरस ने साफ कर दिया।
Lock down के नियमों का पालन करें स्वयं हित में, समाज हित में, राष्ट्रहित में, Covid-19 की गंभीरता को नजरअंदाज न करें अपना बचाव करें क्योंकि बचाव ही सबसे अच्छा उपचार हैं।
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